Jaya Kishori Ji - Katha Vachak

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About Jaya Kishori Ji - Katha Vachak in , Kolkata

हमारा जन्म राजस्थान की मरुधर पावन भूमि के सुजानगढ़ नामक गॉव में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ।

दादाजी एवं दादीजी के सानिध्य में रहने और घर में भक्ति का माहौल रहने के कारण बचपन में ही मात्र 6 वर्ष की अल्पआयु में ही हमारे हृदय में भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेमभाव जागृत हो गया।

बचपन में दादाजी एवं दादीजी के द्वारा भगवान की करुणा, उदारता और भक्त के प्रति अनन्य प्रेम से जुड़ी कहानियां सुनकर हमारे मासूम और निश्चल कोमल हृदय में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बढ़ता चला गया।

और यही प्रेमभाव, भक्तिभाव मात्र 6 वर्ष की छोटी आयु मे मुखारबिन्द से ऐसा उमड़ा, जिसने भजनों के माध्यम से जन-जन के हृदय को बहुत ही गहराई से छुआ।

इसके बाद मात्र 9 वर्ष की अल्पआयु में ही हमने संस्कृत में लिंगाष्टकम्, शिव-तांडव स्तोत्रम्, रामाष्टकम्, मधुराष्टकम्, श्रीरुद्राष्टकम्, शिवपंचाक्षर स्तोत्रम्, दारिद्रय दहन शिव स्तोत्रम् आदि कई स्तोत्रों को गाकर जन-जन का मन मोह लिया।

10 वर्ष की अल्प आयु में ही हमने अमोघफलदायी सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड गाकर लाखों भक्तों के मन में अपना एक विशेष स्थान बना लिया।

बचपन से ही परम पूज्य गोलोकवासी स्वामी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी से अत्यधिक प्रभावित होकर उनकी वाणी को
ही हमने अपना गुरु स्वीकार कर लिया और उनके द्वारा गाये गये "नानी बाई रो मायरो" को अपनी मातृभाषा मारवाड़ी (राजस्थानी) भाषा में तैयार किया और फिर इसे जन-जन के हृदय तक पहुंचाया।

हमारे प्रारम्भिक गुरु राधारानी के अनन्य भक्त बैकुण्ठनाथ जी मंदिर वाले गुरुदेव पं. श्री गोविन्दरामजी मिश्र ने श्रीकृष्ण के प्रति हमारे असीम प्रेम भाव को देखते हुए हमको "किशोरीजी" की उपाधि आशीर्वाद स्वरुप दी लेकिन ज्यादा दिनों तक हमको उनका सानिध्य प्राप्त नहीं हो सका।

हमारे तात्कालिन गुरु भागवताचार्य ज्योतिषाचार्य गुरुदेव पं. श्री विनोद कुमार जी सहल हैं, जिनसे हम श्रीमद् भागवत ज्ञान महायज्ञ की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

हमारा रहन-सहन प्रायः एक साधारण बालिका की तरह ही रहा है।
धर्म के साथ-साथ ज्ञान का भी पूरा सहयोग बना रहे, इसलिये हमने अपनी स्कूली शिक्षा भी जारी रखी है।

कोलकाता के अति प्रतिष्ठित स्कूल महादेवी बिड़ला वर्ल्ड ऐकेडमी से 12वी की परिक्षा अच्छे अंको से पास की तथा अब हम (Shri Shikshayatan College मे B.Com की छात्रा हैं।

हमारी ओर से धर्म के साथ-साथ सेवा का कार्य भी होता रहे, समाज के पिछड़े दीन-हीन असहाय विकलांग बच्चों को सहारा मिल सके और उनके मन से हीन भावना निकल सकें, इस विचार से हमने अपनी सम्पूर्ण कथा इन बच्चों के निःशुल्क आपरेशन, भोजन व शिक्षा हेतु समर्पित कर दी है।

कथाओं से आने वाली समस्त दान राशि हम नारायण सेवा ट्रस्ट, उदयपुर राजस्थान को दान करते हैं, जिससे विकलांग-विवाह को
प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ उन्हें रोजगार और समाज में सर उठाकर जीवन यापन करने का साहस मिलता है।

मैं भ्रूण हत्या को सबसे जघन्य अपराध मानती हूँ और अपनी कथा में सभी लोगों से प्रार्थना करती हैं कि ऐसा जघन्य अपराध न करें।

वृद्ध आश्रमों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए मैं इसे समाज के पतन का कारण मानती हूँ।

गो- हत्या का हम सख्ती से विरोध करते हैं।
गो- हत्या हमारे देश ओर समाज पर कलंक हैं।
अपने प्रवचनों में इन सभी बातों पर विशेष जोर देते हुये मैं बहुत भावुक हो उठती हुँ।

6 वर्ष की उम्र से भक्ति के सफर की शुरुआत करके आज अपनी कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से हजारों दीन-हीन व असहाय विकलांग बच्चों के जीवन को एक नई दिशा दे रही हुँ।

हमारे द्वारा राजस्थानी (मारवाड़ी) भाषा में कथा कहने का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसने वाले राजस्थानी भाइयों को अपनी लुप्त होती मारवाड़ी भाषा को बचाने की प्रेरणा देना है।

हमने एक ओर कथा के माध्यम से परिवारों को बांधने का प्रयास किया है, तो वहीं दूसरी ओर बच्चों में खासतौर पर युवा वर्ग में भगवान के प्रति दृढ़-विश्वास और भक्ति भावना को जागृत किया है।

क्योंकि मेरा मानना है कि आज के बच्चों की जिन्दगी मोबाइल, लैपटॉप, आइ-पैड. Whatsapp, Email और Message तक ही सीमित हो गई है, जिसका परिणाम बच्चों में संस्कारों की कमी के रुप में सामने आ रहा है।

युवा बच्चों द्वारा माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान ना करना, घर आये अतिथि का सत्कार न करना और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करना समाज के भ्रमित होने का संदेश दे रही है।
आज ये बच्चे ईश्वर के प्रति प्रेम और आस्था-विश्वास को भूलते जा रहे हैं, अपनी गो- माता को एक जानवर से ज्यादा नहीं समझते।

इसीलिए अपनी कथाओं व प्रवचन के माध्यम से अत्यंत सरल, सीधी, निश्चल व मधुर वाणी से खुद के अनुभावों के आधार पर ही समाज को समझाने का प्रयास किया हैं।

मैं लगातार इलैक्ट्रानिक, प्रिंट और साइबर मीडिया के माध्यम से धर्म का प्रचार कर रही हूँ।

मैं नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक पद्मश्री परम पूज्नीय साधु श्री कैलाश मानव जी को उनके धार्मिक एंव सामाजिक प्रयासों
के लिये सत्-सत् नमन करती हुँ।

और देश भर के गौपुत्रौं, गौ सेवको तथा सभी गौ रक्षक भाई-बहनो को उनके पुण्य कार्य के लिये उन्हे शिश झुकाकर नमण करती हुँ।

कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा....

इस लोकोक्ति के आधार पर मैं भविष्य में भी यही चाहती हुँ कि ठाकुरजी का नाम सदैव मेरे मुख से निकलता रहे।

ठाकुरजी की इच्छा को ही सर्वोपरि मानते हुए हम उनके द्वारा दिखाई गई राह पर चलना चाहते हैं।
हम खाटु नरेश श्री श्याम बाबा और श्री राणीसती दादीजी की परम भक्त हैं और यही कामना करती हैं कि उनका आशीर्वाद सदैव हमारे साथ रहे।

जया शर्मा "किशोरी"

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