माई मुण्डेश्वरी ट्रस्ट, भभुआ - कैमूर,बिहार

माई मुण्डेश्वरी ट्रस्ट, भभुआ - कैमूर,बिहार

854 15 Hindu Temple

9431420003 maimundeshwaritrustbhabua@gmail.com www.maimundeshwaritrust.com

Patel chowk-04,Mai Mundeshwari Trust मुख्यलाय रोड़, Bhabua, India - 821101

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About माई मुण्डेश्वरी ट्रस्ट, भभुआ - कैमूर,बिहार in Patel chowk-04,Mai Mundeshwari Trust मुख्यलाय रोड़, Bhabua

बिहार का एक ऐसा मंदिर, जहां बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

माता का अनोखा दरबार जहाँ बलि देने के बावजूद नहीं बहता रक्त ! आज हम आपको एक ऎसी देवी के दर्शन कराने जा रहे हैं जिनको जगत कल्याण के लिए दुष्टो का संहार करना पडा था। यहाँ पर शिव और शक्ति दोनों के एक साथ दर्शन होते हैं।यही नहीं हजारों साल पुराने इस मंदिर में बलि तो दी जाती है लेकिन रक्त की एक बूद तक नहीं गिरती। यहाँ पर बाँधी जाती है मन्नतों की घंटी और माता रानी के दर्शन मात्र से मिट जाते हैं जन्म जन्मान्तर के दुःख।


देश के विभिन्न शक्तिस्थलों में बलि देने की प्रथा होती है, लेकिन बिहार के कैमूर जिले में स्थित प्रसिद्ध मुंडेश्वरी मंदिर में बलि देने की प्रथा का तरीका इसे अन्य शक्तिस्थलों से अलग करता है। यहां बलि देने की परंपरा पूरी तरह सात्विक है।
यहां बलि तो दी जाती है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता। कैमूर जिला मुख्यालय से करीब 11 किलोमीटर दूर पंवरा पहाड़ी पर स्थित मुंडेश्वरी धाम में भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थनाएं करने आते हैं। श्रद्घालुओं में मान्यता है कि मां मुंडेश्वरी सच्चे मन से मांगी मनोकामना जरूर पूरी करती हैं। ऐसे तो यहां प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान श्रद्घालुओं की भारी भीड़ एकत्र होती है।
माई मुण्डेश्वरी ट्रस्ट भभुआ के अध्यक्ष अपूर्व प्रभाष जी ने बताया कि यहां बकरे के बलि की प्रथा अवश्य है, लेकिन यहां किसी के जीवन का अंत नहीं किया जाता। उन्होंने बताया, ‘‘माता के चरणों में बकरे को समर्पित कर पुजारी अक्षत-पुष्प डालते हैं और उसका संकल्प करवा दिया जाता है।
इसके बाद उसे भक्त को ही वापस दे दिया जाता है।’’ श्रद्घालु हालांकि इस बकरे को अपने घर में काटकर इसके मांस को प्रसाद के रूप में बांट देते हैं, लेकिन शक्तिस्थल पर बकरे की हत्या नहीं की जाती। वैसे कई लोग इस प्रसाद (बकरे) को जीवित भी रखते हैं।
मुंडेश्वरीधाम की महिमा वैष्णो देवी और ज्वाला देवी जैसी मानी जाती है। काफी प्राचीन माने जाने वाले इस मंदिर के निर्माण काल की जानकारी यहां लगे शिलालेखों से पता चलती है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, मंदिर परिसर में मिले शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 635-636 ईस्वी के बीच का हुआ था। मुंडेश्वरी के इस अष्टकोणीय मंदिर का निर्माण महराजा उदय सेन के शासनकाल का माना जाता है।
माई मुण्डेश्वरी ट्रस्ट के अध्यक्ष अपूर्व प्रभाष जी ने बताया कि दुर्गा के वैष्णवी रूप को ही मां मुंडेश्वरी धाम में स्थापित किया गया है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा के रूप में है, क्योंकि इनका वाहन महिष है।
इस मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है। 608 फीट ऊंची पहाड़ी पर बसे इस मंदिर के विषय में कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह मंदिर 108 ईस्वी में बनवाया गया था। माना जाता है कि इसका निर्माण शक शासनकाल में हुआ था। यह शासनकाल गुप्त शासनकाल से पहले का समय माना जाता है।
मंदिर परिसर में पाए गए कुछ शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं, जबकि गुप्त शासनकाल में पाणिनी के प्रभाव के कारण संस्कृत का प्रयोग किया जाता था। यहां 1900 वर्षों से पूजन होता चला आ रहा है। मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह आज तक कायम है।
गर्भगृह के कोने में देवी की मूर्ति है जबकि बीच में चर्तुमुखी शिवलिंग स्थापति है। बिहार सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी कैलेंडर में भी मां मुंडेश्वरी धाम का चित्र शामिल किया गया है

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